अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: रूढ़िवादी सोच को तोड़ते हुए आगे बढ़ती महिलाएं

 

कोलकाता. फुटबॉल के मैदान पर रोजाना कसी जाने वाली फब्तियों को नजरअंदाज करना आसान नहीं था, लेकिन सोनाली सोरेन उनमें से नहीं थीं, जो किसी के रोकने से रुक जातीं। पूर्व बर्धमान के एक गांव की निवासी सोरेन ने सभी रूढ़ियों को तोड़ते हुए प्रसिद्ध ईस्ट बंगाल क्लब के लिए खेलने का मन बनाया। वह अब भारत की अंडर -17 टीम में जगह बनाने वाली शीर्ष दावेदारों में से एक हैं।

सोरेन देश की उन महिलाओं में शामिल हैं, जो तमाम बाधाओं के बावजूद आगे बढ़ती रहीं। सोरेन ने कहा, ‘‘ मैं एक पेशेवर फुटबॉल खिलाड़ी बनना चाहती हूं। मुझे हमेशा खेलों से लगाव था, लेकिन कभी कोई सही दिशा नहीं मिल पाई। फिर मेरे स्कूल के अध्यापक और गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘शीरजा फाउंडेशन’ ने फुटबॉल को गंभीरता से लेने के लिए प्रेरित किया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ शुरुआत में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा, क्योंकि कई गांववाले मेरे परिवार का मजाक उड़ाते थे। अब, वहीं मेरी मिसाल देते हैं।’’ सोरेन की तरह की बंगाल के दुर्गापुर की निवासी शेफाली मलिक (41) ने भी रूढ़िवादी सोच को तोड़ते हुए नौकरी छोड़कर अपना जीवन परिस्थितियों का शिकार हुई महिलाओं के नाम करने का मन बनाया।

मलिक ने कहा, ‘‘ अपने गांवों में मुझे कई ऐसी महिलाएं मिलीं, जो चुपचाप घरेलू ंिहसा का शिकार होती रहीं। कुछ युवतियों को घर के काम करने के लिए स्कूल छोड़ना पड़ा। मुझे एहसास हुआ कि मेरी नौकरी मुझे काफी चीजों में बांधती है, इसलिए मैंने नौकरी छोड़कर इन महिलाओं के लिए काम करने का इरादा किया।’’

मलिक को कई युवा लड़कियों के माता-पिता के विरोध का सामना भी करना पड़ा, जब उन्होंने उन्हें उनके घरों के आसपास बने अस्थायी शिक्षा केन्द्रों में दाखिला दिलाने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि उनके माता-पिता को मनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। वहीं, ‘स्माइल फाउंडेशन’ ने भी उनकी मदद की और फिर उन्होंने इस दिशा में साथ मिलकर काम किया।

‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ के अवसर पर ‘पीटीआई-भाषा’ से बात करते हुए, पश्चिम बंगाल की महिला एवं बाल विकास मंत्री शशि पांजा ने कहा कि मातंगिनी हाजरा जैसी शक्तिशाली महिला नेताओं, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी, उन्होंने आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन किया है।

उन्होंने कहा, ‘‘ आज महिलाएं आत्मविश्वास से भरी हैं…हालांकि अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है। ‘अमरा नारी, अमरा परी’ (हम महिलाएं हैं, हम कर सकते हैं) ।’’