हानिकारक बैक्टीरिया पर घटा एंटीबायोटिक का असर, अध्ययन में दावा

 

टीबी और कुष्ठ रोग जैसी बीमारियां पैदा करने वाले हानिकारक बैक्टीरिया पर अब एंटीबायोटिक का असर कम हो गया है। फलस्वरूप उन्हें नियंत्रित करने के लिए नई रणनीति तैयार करने की जरूरत है।

तिरुवनंतपुरम स्थित राजीव गांधी जैव प्रौद्योगिकी केंद्र (आजीसीबी) के अध्ययन में यह बात सामने आई है।
‘एंटीमाइक्रोबियल एजेंट्स एंड कीमोथेरेपी’ पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चला है कि एंटीबायोटिक के इस्तेमाल से बैक्टीरिया दो चरण में मरते हैं। उन बैक्टीरिया का एक बहुत बड़ा हिस्सा तेजी से मर जाता है जबकि उसका छोटा सा हिस्सा एंटीबायोटिक के असर से बच जाता है और लंबी अवधि तक उस माहौल में टिका रह जाता है।

आरजीसीबी की विज्ञप्ति में कहा गया है कि जो बचते हैं वे एंटीबायोटिक का असर बने रहने से मर तो जाते हैं लेकिन उसकी दर बहुत धीमी होती है। एंटीबायोटिक थेरेपी की अवधि का पालन नहीं करने से बचे हुए इन बैक्टीरिया से फिर संक्रमण हो जाता है।

हाल की रिपोर्ट भी कहती है कि सिप्रोफ्लोक्सासिन या रिफामपिसिन की घातक खुराक पर एंटीबायोटिक के बाद भी बचे हुए माइकोबैक्टीरिया प्रतिरोधी हो जाते हैं।

शोध में सामने आया कि एंटीबायोटिक उपचार के दौरान बने एम स्मेगमाटिस के समूह में प्रतिक्रियात्मक ऑक्सीजन प्रजातियां अधिक होती हैं जिससे एकल एवं बहुल एंटीबायोटिक के प्रति तेजी से दवा प्रतिरोधकता बनती है।

आरजीसीबी ने कहा कि दवा प्रतिरोधक स्वरूपों से निपटने के लिए नये एंटीबायोटिक की पहचान या बैक्टेरियाई प्रणाली को निशाना बनने के वैसे तौर तरीके ढूंढने हैं जिससे प्रतिरोधकता के उभार की गति धीमी हो।

अध्ययन में डब्ल्यूएचओ से मंजूर सूरामिन की प्रभावकारिता परखी गई, जिसका उपयोग निंद्रा संबंधी बामारी एवं संक्रमण में किया जाता है।