कांग्रेस हमेशा भारत के विकास के लिए प्रगतिशील कदम उठाने से कतरायी है: सीतामरण

 

नयी दिल्ली  वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कांग्रेस पर हमेशा भारत के विकास और वृद्धि के लिए प्रगतिशील कदम उठाने से कतराने तथा केवल प्रतिगामी नीतियों को प्रोत्साहित करने का आरोप लगाते हुये आज कहा कि वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा पेश किए गए इंसोल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आईबीसी) से पहले वित्तीय कॉर्पोरेट संकट की कार्यवाही कानूनों के एक टुकड़े द्वारा शासित होती थी, जिससे समस्याएँ सुलझने के बजाय और बिगड़ जाती थीं। श्रीमती सीतारमण ने इसको लेकर एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि माल एवं वस्तु सेवा कर (जीएसटी) की तरह कांग्रेस आम सहमति बनाने और सुधारों को लागू करने के लिए राजनीतिक पूंजी खर्च करने के वास्ते उत्सुक नहीं थी। कांग्रेस हमेशा भारत के विकास और वृद्धि के लिए प्रगतिशील कदम उठाने से कतराती रही है और केवल प्रतिगामी नीतियों को प्रोत्साहित करती रही है। उन्होंने कहा कि इंसोल्वेंसी कानून लागू करने की सख्त जरूरत के बजाये संप्रग सरकार ने जानबूझकर बैंकों और परिचालन ऋणदाताओं की कीमत पर अपने साथियों को फ़ायदा पहुंचाने की कोशिश की, जिसकी वजह से बैंकों और परिचालन ऋणदाताओं को अपने बकाये की वसूली के लिए दर-दर भटकना पड़ा। आईबीसी ने बैंकों को संप्रग के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस और उसके सहयोगियों द्वारा ‘फोन बैंकिंग’ और अंधाधुंध ऋण देने के माध्यम से पैदा किए गए एनपीए संकट से उबरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आईबीसी ने वित्तीय प्रणाली में विश्वास और पारदर्शिता का निर्माण किया है। श्रीमती सीतारमण ने कहा कि यह अफ़सोस की बात है कि भारत को इन आवश्यक सुधारों को लागू करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति मिलने से पहले दशकों तक इंतज़ार करना पड़ा। आईबीसी जैसे कानून प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली सरकार की दूरगामी दृष्टि और दूरदर्शिता का प्रमाण हैं। संप्रग युग के पुराने कानून की लालफीताशाही से मुक्त होकर आज पूरी अर्थव्यवस्था इस ऐतिहासिक कानून का लाभ उठा रही है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने इंसोल्वेंसी ढांचे को मजबूत करने और समय पर समाधान सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। सरकार रिक्तियों को तेजी से भरकर पूरे देश में एनसीएलटी और एनसीएलएटी की क्षमताओं को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। विनियमित दिवालियेपन और मूल्यांकन पेशेवरों का उभरता हुआ कैडर भी इन प्रयासों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आईबीसी के अधिनियमन के बाद से 8 वर्षों की संक्षिप्त अवधि में, उद्योग ने लगभग 4,400 दिवालियेपन पेशेवरों और 5,500 पंजीकृत मूल्यांकनकर्ताओं को विकसित किया है। हालाँकि यह इस महत्वपूर्ण क्षेत्र के भीतर विशेषज्ञता के निर्माण में एक महत्वपूर्ण सुधार को दर्शाता है, फिर भी समाधान प्रक्रिया की गुणवत्ता और प्रभावकारिता को लगातार मजबूत करने की आवश्यकता बनी हुई है। इस उद्देश्य के लिए भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) निरंतर प्रशिक्षण और विकास प्रदान करने के लिए हितधारक संस्थानों के साथ सक्रिय रूप से सहयोग करता है। विफलता की स्थिति में व्यवसायों को कानूनी रूप से सुरक्षित रास्ता देना और कुशल पुनर्वितरण के लिए बंद पड़े ऋण को मुक्त करना निवेश और विकास को बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम हैं।