सत्ता परिवर्तन में महिलाओं और किसानों के अंडर करंट की भूमिका अहम

 रायपुर।  मतदान के बाद 17 नवंबर से छाई खामोशी को नगाड़ों, पटाखों और धमाकों ने 3 दिसंबर को तोड़ दिया। 30 नवंबर के एग्जिट पोल के सारे विश्लेषण ध्वस्त हो गए। दावे-प्रतिदावे जनादेश में बह गए। प्रदेश के पुराने से पुराने राजनेताओं और समीक्षकों को भी ऐसी उम्मीद नहीं थी। सत्तारूढ़ कांग्रेस के दो तिहाई मंत्री भी अंडर करंट की चपेट में आ गए। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ तीन अन्य मंत्री ही एकबार फिर विधानसभा पहुंचने लायक बचे। भाजपा ने एकबार फिर सिद्ध कर दिया कि संगठन और कार्यकर्ताओं की ताकत सर्वोपरि है। छह महीने पहले तक अपराजेय माना जा रहा कांग्रेसी किला ध्वस्त हो गया। छत्तीसगढ़ में अब फिर भाजपा की सरकार होगी। लोकसभा चुनाव के लिए पहले से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए मन बनाए बैठी बताई जा रही जनता ने मोदी की गारंटी को पूरा होने की गारंटी मान ली। और यही गेम चेंजर बन गया। भाजपा के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती धान के मुद्दे पर कांग्रेस से मुकाबला करने की थी। केंद्रीय नेतृत्व और विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मुफ्त की रेवड़ी (फ्रीबीज) के घोर विरोधी रहे हैं। 2018 का चुनाव भी धान के लिए अतिरिक्त मूल्य नहीं देने की केंद्र सरकार की नीति के कारण ही हारना पड़ा था। प्रदेश चुनाव प्रभारी बनाए जाने के बाद ओम माथुर, चुनाव सह प्रभारी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. मनसुख भाई मांडविया और प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव के लिए इस मुद्दे को सुलझाना ही बड़ी चुनौती रही।