जाति बदलने के बाद भी लोग रहे लाभ

 

 रायपुर। सदियों से चल रहे ऊंच-नीच, छुआछूत, जात-पांत और भेदभाव ने हिंदू समाज का ताना-बाना छिन्न-भिन्न कर दिया है। यह विडंबना है कि समाज में व्याप्त कुरीतियां ही मतांतरण को उर्वरता प्रदान कर रही हैं। इसका लाभ उठाकर दूसरे मत के लोग ऐसे पीड़ित लोगों या परिवारों का मतांतरण करवा रहे हैं। उन्हें समझाया जाता है कि उनके मत में ऐसा नहीं है, बल्कि समानता है। 

पुश्त-दर-पुश्त प्रताड़ना सह रहे लोग और परिवार सम्मान से जीने की लालसा में मत परिवर्तन कर लेते हैं। मतांतरण करने वाला व्यक्ति या परिवार हिंदू नहीं रहा यानी वह जात-पांत के बंधन से मुक्त हो गया। इसके बावजूद ऐसे लोग जाति प्रमाण पत्र बनवाते हैं और जातीय व्यवस्था के कारण मिलने वाला सरकारी लाभ नहीं छोड़ना चाहते। ऐसे लोगों को इस लाभ से वंचित कर दिया जाना चाहिए।

राज्य में ऐसे मतांतरित 250 से अधिक लोग जातीय आरक्षण का लाभ लेकर सरकारी नौकरी कर रहे हैं। इसका विरोध भी हो रहा है। विरोध करने वालों का तर्क है कि जब मतांतरण कर लिया तो उन पर जात-पांत का बंधन ही नहीं रहा। ऐसे लोगों ने समानता का सम्मान पाने के लिए ही मतांतरण किया है। जब वे अपने मत में बिना जात-पांत के समान हो गए तो फिर जातीय आधार पर वंचितों की श्रेणी में भी कैसे रह सकते हैं?

ऐसे लोगों का जाति प्रमाण पत्र रद किया जाए और उन्हें इस आधार मिली नौकरी और दूसरे सरकारी लाभ वापस ले लिए जाएं। संवैधानिक व्यवस्था के तहत अब वे अल्पसंख्यक हो सकते हैं। उन्हें अल्पसंख्यकों को मिलने वाला अधिकार मिलना चाहिए। मगर ऐसे लोग दोहरा लाभ ले रहे हैं। एक ओर जहां जातीय आरक्षण तो दूसरी ओर अल्पसंख्यकों को मिलने वाली सुविधा का भी लाभ ले रहे हैं।

मतांतरितों को दोहरा लाभ नहीं दिया जाना चाहिए। उन्हें दोहरा लाभ नहीं देने की मांग करने वालों के तर्कों में दम है। राज्य में ऐसे मतांतरितों की संख्या बहुत अधिक है। इन लोगों ने लोभ में या लाभ लेने के उद्देश्य से मतांतरण तो कर लिया, लेकिन जातीय पहचान नहीं छोड़ी है। पहले मतांतरित लोग अपना नाम बदल लेते थे। इससे यह पता चल जाता था कि उन्होंने मतांतरण कर लिया है, लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है। वे जाति प्रमाण पत्र बनवाकर उसके आधार पर मिलने वाली सुविधा का लाभ ले रहे हैं।

 इससे उस समाज में आक्रोश बढ़ रहा है। उनका मानना है कि ऐसे लोग मतांतरण करने के बाद भी लाभ लेकर उनके समाज के युवाओं को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इससे नाराज समाज के प्रतिनिधियोंने फैसला लिया है कि मुख्यमंत्री से मुलाकात कर ऐसे लोगों को जातीय आधार पर मिलने वाले लाभ से वंचित करने की मांग करेंगे। आशा की जानी चाहिए कि सरकार भी इस समस्या को समझेगी और उचित समाधान निकालेगी।