“शब्दों की धरोहर: एक लेखक की यात्रा नवभारत से डिजिटल युग तक”
लेखक : बलवंत सिंह खन्ना
करीब बीस साल पहले की बात है, जब हर सुबह हमारे घर में नवभारत अखबार का आना एक पारिवारिक रिवाज था। अखबार के पन्नों में खबरें तो होतीं, लेकिन मेरे लिए सबसे प्रिय हिस्सा था—शब्दावली वाला पृष्ठ। जैसे ही अखबार मेरे हाथ में आता, मैं सबसे पहले शब्दावली के पिछले दिनों के उत्तरों को देखता, यह जांचता कि मैंने कितने सही हल किए थे। इसके बाद, नए शब्दों का खेल शुरू होता। शब्दों का अर्थ समझने, उनके पर्यायवाची और विलोम खोजने का यह खेल न केवल मनोरंजक था, बल्कि मेरे दिमाग को धारदार भी बना रहा था।
शब्दावली सिर्फ एक अभ्यास नहीं, एक साधना थी। इसके जरिए मैं भाषा को गहराई से समझने लगा। यह अभ्यास मेरे लेखन कौशल को सँवारता, मेरे विचारों को संप्रेषणीय बनाता, और शब्दों के जरिए भावनाओं को व्यक्त करने की क्षमता को बढ़ाता।
समय के साथ, जब डिजिटल युग का आगमन हुआ, तो सूचनाएँ मोबाइल और लैपटॉप के जरिए पल भर में हमारी हथेलियों में समा गईं। अब खबरें पढ़ने के लिए अखबार की ज़रूरत नहीं रही। मोबाइल स्क्रीन पर हर नई जानकारी मिल जाती। इसी बदलाव के बीच, अखबार की वह शब्दावली भी कहीं छूट गई। अब मेरे लिए अखबार केवल एक सरसरी निगाह से देखने की चीज़ बनकर रह गया।
एक दिन जब मैंने पुराना नवभारत अखबार देखा, तो शब्दावली वाला पन्ना मेरी पुरानी यादों को जगा गया। मुझे एहसास हुआ कि उस समय के शब्दावली अभ्यास ने मेरे जीवन को कितना समृद्ध किया था। यह मात्र शब्दों का खेल नहीं था, बल्कि भाषा की बुनियाद को मजबूत करने का माध्यम था। शब्दों के साथ मेरा यह रिश्ता अब तक मेरे लेखन में स्पष्ट दिखता था।
आज के युवा लेखकों के लिए इस कहानी में एक महत्वपूर्ण सबक छिपा है। डिजिटल युग में तेजी से उपलब्ध हो रही जानकारियाँ और लेखन के नए माध्यमों ने भले ही रचनात्मकता के नए रास्ते खोले हैं, लेकिन भाषा की गहराई को समझने का जो मार्ग शब्दावली जैसी साधनाओं से मिल सकता है, उसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
शब्दों का सही चुनाव और उनके अर्थों को समझना किसी भी लेखक के लिए महत्वपूर्ण है। आज जब ब्लॉग, सोशल मीडिया पोस्ट्स, और डिजिटल कंटेंट का महत्व बढ़ गया है, तो एक लेखक के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह शब्दों के सही और प्रभावी प्रयोग का ज्ञान रखे। शब्दावली जैसे खेल न केवल आपको नए शब्द सिखाते हैं, बल्कि वे आपके विचारों को सटीकता और स्पष्टता के साथ व्यक्त करने की क्षमता भी देते हैं।
यह सही है कि आज के समय में लेखन के कई नए प्लेटफार्म और उपकरण उपलब्ध हैं। लेकिन यदि हम लेखन को सशक्त और प्रभावी बनाना चाहते हैं, तो हमें शब्दों की बारीकियों को समझना होगा। पुराने समय के शब्दावली जैसे अभ्यास, चाहे वे अखबार के जरिए हों या डिजिटल प्लेटफॉर्म पर, आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं।
लेखकों के लिए शब्द केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं होते, वे भावनाओं, विचारों, और अनुभवों को जीवंत बनाने का साधन होते हैं। एक अच्छा लेखक वही होता है, जो अपने शब्दों को लेकर सजग हो, जो भाषा की ताकत को समझे और उसे प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत कर सके।
शब्दावली भरने का अभ्यास न केवल लेखन को बेहतर बनाता है, बल्कि यह एक मानसिक व्यायाम भी है, जो आपको सोचने, कल्पना करने और विचारों को बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने की क्षमता देता है। इस अभ्यास से आप उन शब्दों से परिचित होते हैं, जिनका आप शायद रोज़मर्रा की बातचीत में इस्तेमाल नहीं करते, लेकिन जो आपके लेखन को गहराई और समृद्धि प्रदान कर सकते हैं।
आज के लेखकों के लिए संदेश साफ है—भले ही हम डिजिटल युग में जी रहे हों, लेकिन भाषा और शब्दों की शक्ति को कभी न भूलें। चाहे वह शब्दावली भरने का खेल हो या किताबें पढ़ना, शब्दों के साथ गहरा संबंध बनाएं। क्योंकि अंत में, शब्द ही हैं जो आपके विचारों और रचनात्मकता को एक स्वरूप देते हैं।
शब्दों का ज्ञान और उनके सही प्रयोग का अभ्यास लेखन में सफलता का मार्ग है। चाहे हम कितनी भी तकनीकी तरक्की क्यों न कर लें, भाषा की गहराई और सटीकता का महत्व कभी कम नहीं होगा। यही वह धरोहर है, जिसे हमें न केवल संजोए रखना है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी इसके प्रति जागरूक करना है।
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