जगदलपुर। आदिवासी बड़े शूरवीर होते हैं। वे पीठ पर गोली खाना कतई पसंद नहीं करते। वे सीधे सीने पर गोली खाकर मातृभूमि के लिए मर मिट जाने पर भरोसा करते हैं। इसका एक बड़ा उदाहरण है आदिवासी जवान राजू पोयम की शहादत। सात गोलियों का जख्म सहने के बाद भी राजू आयोम मैदान छोड़कर भागे नहीं, बल्कि नक्सलियों का डटकर मुकाबला करते रहे। आज न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरा देश रणबांकुरे राजू आयोम को सैल्यूट कर रहा है।।
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