ओलंपिक तक पहुंचने का सपना माओवाद के साए में खेलों का उजाला
कक्षा आठवीं से शुरू हुआ तीरंदाजी का सफर
ग्राम बोटीकनेरा की रहने वाली सुशीला नेताम ने अपनी तीरंदाजी की शुरुआत
कक्षा आठवीं में शुरू की थी। वर्तमान में वह पोस्ट मैट्रिक कन्या छात्रावास
में रहकर कॉलेज की पढाई कर रही है और तीरंदाजी का प्रशिक्षण ले रही हैं।
सुशीला बताती हैं कि शुरुआत में उन्हें तीरंदाजी के बारे में ज्यादा
जानकारी नहीं थी। पहले मैच में प्रदर्शन उम्मीदों के अनुरूप न होने के
बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। घरवालों और शिक्षकों के सहयोग से
आत्मविश्वास हासिल किया और कठिन मेहनत के बाद धीरे-धीरे अपने खेल में सुधार
किया।
मुश्किलों के बीच बढ़ा आत्मविश्वास
शुरुआत में उपकरणों और संसाधनों की कमी सुशीला के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी।
जिला प्रशासन और भारत तिब्बत सीमा पुलिस की मदद से उन्हें सुशीला सहित सभी
खिलाड़ियों को आवश्यक उपकरण, शूज और ट्रैकसूट आदि उपलब्ध कराए गए। इससे उनके
आत्मविश्वास को नई सीढ़ी मिली । सुशीला बताती हैं कि पहली बार राष्ट्रीय
मैच खेलने के लिए ट्रेन से नागपुर गई थी। ज्यादा उत्साह और सफ़र के कारण
स्वास्थ्य खराब हो गया जिसके कारण अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकीं। लेकिन इसके
बाद उन्होंने अपने अनुभव से सीखते हुए खेल और खुद में सुधार किया। सुशीला
ने 2019-20 में सीनियर नेशनल में अपना स्थान पक्का किया, हालांकि मेडल नहीं
ला पाईं। इसके बाद उन्होंने अपनी कमियों पर काम किया और जून 2023 में खेलो
इंडिया प्रतियोगिता में ब्रॉन्ज मेडल जीता। यह उपलब्धि उनके लिए
आत्मविश्वास बढ़ाने वाली रही। इसके बाद से उन्होंने अपने खेल में और सुधार
करना जारी रखा और अब ओलंपिक में हिस्सा लेने का सपना देख रही हैं।
घरवालों का सहयोग और टीचर्स की मेहनत बना प्रेरणा
सुशीला बताती हैं कि शुरुआत में उनके परिवार को तीरंदाजी के बारे में
ज्यादा जानकारी नहीं थी। लेकिन जब उन्होंने विभिन्न स्तरों पर खेलना शुरू
किया, तो उनके परिवार का समर्थन मिलने लगा। उनके पिता का बचपन में ही निधन
हो गया था। उनकी मां गृहिणी हैं, और बड़े भाई खेती का कार्य करते हैं।
आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद परिवार ने उन्हें हर संभव सहयोग दिया,
जिससे सुशीला की आत्मविश्वास बढ़ा।
खेल और पढ़ाई का संतुलन
सुशीला दिनचर्या के बारे में बताती हैं कि वह सुबह अभ्यास के लिए समय
निकालती हैं, फिर क्लास अटेंड करती हैं और शाम को ग्राउंड में वापस अभ्यास
करती हैं फिर रात में पढ़ाई करती हैं। सुशीला कहती है की खेल और पढ़ाई बीच
ज्यादा वक्त खेल को देती है।
ओलंपिक तक पहुंचने का सपना
आठवीं कक्षा में दीपिका कुमारी से मुलाकात ने सुशीला को ओलंपिक में खेलने
की प्रेरणा दी। उन्होंने उस समय ठान लिया कि वह भी दीपिका कुमारी की तरह
देश का प्रतिनिधित्व करेंगी। सुशीला की मेहनत और समर्पण ने उन्हें जिले के
अन्य युवाओं के लिए एक प्रेरणा बनी है।
जीत की पहली ख़ुशी माँ के साथ
सुशीला का कहना है कि खेल में सफलता के लिए अनुशासन, मेहनत और आत्मविश्वास
सबसे महत्वपूर्ण हैं। उनकी मां और परिवार उन्हें आगे बढ़ने के लिए हमेशा
प्रोत्साहित करते हैं। राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में पहला स्थान हासिल करने
के बाद उन्होंने अपनी मां को फोन पर यह खुशखबरी दी। तब उनकी मां ने गर्वित
होकर उन्हें और अधिक मेहनत करने की सलाह दी थी।
खेलो इंडिया लघु केंद्र की स्थापना से खेलों को बढ़ावा
खेल प्रतिभाओं को निखारने और ग्रामीण युवाओं को खेलों में प्रोत्साहित करने
के लिए जिले में खेलो इंडिया लघु केंद्र की स्थापना की गई है। इस केंद्र
माध्यम से खिलाड़ियों को बेहतर प्रशिक्षण, आवश्यक उपकरण, और आधुनिक सुविधाएं
उपलब्ध कराया जा रहा है। केंद्र का उद्देश्य न केवल स्थानीय स्तर पर खेल
प्रतिभाओं को पहचानना है, बल्कि उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच तक
पहुंचाना भी है। जिले में खेलो इंडिया लघु केंद्र के खुलने से युवाओं में
खेलों के प्रति रुचि बढ़ रही है।
AD2
Social Plugin