रायगढ़। एक महीने के भीतर चार बड़े मतांतरण की घटनाएं चंगाई सभा से पोल खुली है। एक माह के अंदर शहर के करीब एक सौ से अधिक परिवारों का मतांतरण करा दिया गया है। मतांतरण कराने वाले व्यक्तियों द्वारा उन बस्तियों को चुना जा रहा है जहां आर्थिक रुप से कमजोर लोग रहते हैं जिसमें वर्ग विशेष के समुदाय के लोग पादरियों के जरिए स्वास्थ्य स्वस्थ करने का प्रलोभन देकर मतांतरण के प्रति दिग्भ्रमित करने का खेल चल रहा है। सबसे पहले इसमें महिला वर्ग को साधा जाता है। वे सभा मे आने के बाद शारिरिक कष्टों को साझा करते है। जिन्हें सभा के अंतिम में झाड़-फूंक,बैगा- गुनिया की तर्ज पर तेल तथा पानी को दवा की तरह दिया जाता हैं। यह प्रक्रिया जिन पर असरकारी रहता है वे बीमारी से बचाव होने के चलते आस्था उनका बढ़ते ही मतांतरण बेझिझक करते हैं। घरों में पादरियों के कहें मुताबिक भगवान की फोटो छायाचित्र तक को हटा देते है, जो इसका विरोध करते उसे उन लोगों के बीच से भगा दिया जाता है। वह इस घटनाक्रम के बाद उनके मन मस्तिष्क में इस कदर एक धर्म के प्रति अवसाद भरा जाता है जिससे वह अपने घर में मौजूद देवी देवताओं के छायाचित्र, प्रतिमा को रखना तो छोड़ चर्चा करना भी मुनासिब नहीं समझते हैं। इस तरह माथांतरण का खेल शहर से ग्रामीण अंचल में लगातार जोरों पर चल रहा है जिसका जीता जाता प्रत्यक्ष प्रमाण शहर में एक माह में चार चंगाई सभा से नजर आ रहा है। मत्तांतरण को लेकर जशपुर के राजा दिलीप सिंह जूदेव द्वारा सार्थक प्रयास किया गया था। जिसमें उनके द्वारा घर वापसी अभियान चलाया गया था। गांव-गांव में छोटे बड़े स्तर पर या अभियान चला । पैर धुलाकर घर औरसनातनी धर्म से जोड़ा गया।जिसका परिणाम भी बेहतर रहा है। गरीब तबके में जीवन यापन करने वाले लोग आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर कई तरह के सवालों के साथ उधेड़बुन में रहते है। जरूरी स्वास्थ्य सुविधा का लाभ नहीं ले पाते है या फिर जानकारी के अभाव इससे वंचित रहते हैं यही वजह रहता है कि मतांतरण के खेल में लगे लोगों का नेटवर्क कड़ी से कड़ी मिलाते हुए ऐसे लोगों को चिन्हित करता है और सभा में लाने तक की व्यवस्था की जाती है। इन परिस्थितियों को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग को ऐसे लोगों को चिन्हित करते हुए उनके लिए कार्य करना होगा।
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