रायपुर। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने जिला खनिज न्यास (DMF) घोटाले के मामले में कार्रवाई तेज कर दी है। बीते दो दिनों के भीतर आदिवासी विकास विभाग की सहायक आयुक्त माया वारियर और निलंबित आईएएस रानू साहू को गिरफ्तार किया जा चुका है। अब जांच एजेंसी के निशाने पर एक दर्जन से अधिक अधिकारी और कारोबारी हैं, जिन पर जल्द ही शिकंजा कसा जाएगा। करीब 300 करोड़ के डीएमफ घोटाले की जांच कर रही ईडी ने विशेष कोर्ट को बताया है कि डीएमएफ की टेंडर की राशि का 25-40 प्रतिशत तक सरकारी अफसरों को कमीशन के रूप में दिया गया है। ईडी की जांच में यह भी सामने आया है कि टेंडर पाने के लिए राज्य के अधिकारियों, प्रभावशाली राजनेताओं को रिश्वत दी गई है। ईडी के सूत्रों के अनुसार माया वारियर, रानू साहू से पूछताछ में घोटाले से संबंधित कई राज खुलेंगे। इसके आधार पर ही अधिकारी-कर्मचारी समेत अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी होगी। डीएमएफ घोटाले की जांच कर रही ईडी के हाथ यह भी दस्तावेज लगे है कि प्राइवेट कंपनियों के टेंडर पर 15 से 20 फीसदी अलग-अलग कमीशन सरकारी अधिकारियों ने लिया है। टेंडर करने वाले संजय शिंदे, अशोक कुमार अग्रवाल, मुकेश कुमार अग्रवाल, ऋषभ सोनी और बिचौलिए मनोज कुमार द्विवेदी, रवि शर्मा, पियूष सोनी, पियूष साहू, अब्दुल और शेखर के साथ मिलकर अन्य ने किसी चीज की मूल कीमत से ज्यादा बिल का भुगतान किया था। टेंडर देने के नाम पर अधिकारियों सारे नियमों को दरकिनार कर दिया, जबकि डीएमएफ राज्य के हर जिले में स्थापित एक ट्रस्ट है और खनन गतिविधियों से प्रभावित लोगों के लाभ के लिए खनिकों द्वारा वित्त पोषित है। ईडी ने इस साल मार्च में आरोप लगाया था कि छत्तीसगढ़ में डीएमएफ से जुड़े खनन ठेकेदारों ने आधिकारिक काम के टेंडर पाने के लिए राज्य के अधिकारियों और राजनीतिक कार्यकारियों को भारी मात्रा में अवैध रिश्वत दी है। यह क़रीब 600 करोड़ से उपर का प्रथम दृष्टया घोटाला है। माया वारियर कोरबा में डीएमएफ के तहत स्वीकृत होने वाले काम की प्रमुख कर्ताधर्ता थीं जबकि रानू साहू कलेक्टर थी। विशेष कोर्ट ने दोनों को 22 अक्टूबर तक ईडी की रिमांड पर सौंपा है।
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