महिलाओं के खिलाफ हिंसा का बढ़ता ग्राफ
जमाअत-ए-इस्लामी हिंद का महिला विभाग देश में महिला विरोधी हिंसा, उत्पीड़न, यौन हमलों और हत्या के बढ़ते
रायपुर । मामलों पर गहरी चिंता व्यक्त करता है। भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति गहरी सामाजिक असमानताएं, स्त्रीद्वेष, पूर्वाग्रह और भेदभाव स्थिति को और भी जटिल बना देते हैं। विशेषकर जब बात उपेक्षित वर्गों जैसे दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और विकलांग महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की हो। कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में आरजी कर अस्पताल में बलात्कार और हत्या, गोपालपुर (बिहार) में 14 वर्षीय दलित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या, उधम सिंह नगर (उत्तराखंड) में एक मुस्लिम नर्स के साथ बलात्कार और हत्या तथा बदलापुर (महाराष्ट्र) के एक स्कूल में दो किंडरगार्टन बच्चियों के साथ यौन उत्पीड़न जैसी घटनाएं साबित करती हैं कि हमारे देश में महिलाओं और लड़कियों के प्रति मानसिकता और दृष्टिकोण पर गंभीर आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है। केरल में आंशिक रूप से जारी हेमा समिति की रिपोर्ट से पता चलता है कि मनोरंजन उद्योग जैसे अत्यंत उदार कार्यस्थलों पर भी महिलाओं की सुरक्षा में कमी है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ अपराध साल दर साल बढ़ रहे हैं। हालाँकि, ये संख्याएँ तो केवल एक झलक एक है, क्योंकि ये दर्ज मामलों पर आधारित हैं। जानबूझकर या अन्यथा दबाए गए या अनदेखा किए गए मामलों की संख्या काफी अधिक है। इस चिंतनीय प्रवृत्ति का एक और उल्लेखनीय पहलू बिलकिस बानो (जिनके साथ 2002 के गुजरात दंगे में सामूहिक बलात्कार हुआ था) द्वारा न्याय के लिए किया गया कठिन संघर्ष है। उसका (बिलकिस) मामला हमारी संस्थाओं में व्याप्त प्रणालीगत पूर्वाग्रह और असंवेदनशीलता का स्पष्ट प्रमाण है। ऐसे जघन्य कृत्यों में अपराधियों की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक प्रतिष्ठानों के प्रयास राजनेताओं की परेशान करने वाली जटिलता को और उजागर करते हैं।। । हाल ही में एडीआर की रिपोर्ट जिसमें चौंकाने वाली बात यह में 1512 151 मौजूदा सांसदों पर है कि वर्तमान महिलाओं के खिलाफ अपराध के ध के आरोप हैं, इस तथ्य को और मज़बूती देता है।
नैतिक मूल्यों का ह्रास
हमारा दृढ़ विश्वास है कि महिलाओं के विरुद्ध ये अत्याचार एक व्यापक रूप से फैल रही बीमारी का लक्षण जो हमारे देश की शांति और प्रगति को प्रभावित कर रही है। इस खतरे का मूल कारण नैतिक मूल्यों का पतन है। समाज में नैतिक मूल्यों की कमी के कारण महिलाओं को वस्तु के रूप में देखना, यौन शोषण और दुर्व्यवहार, पोर्नोग्राफी का व्यापक उपयोग, विवाहेतर संबंध और बेवफाई, शराब और नशीली दवाओं का बढ़ता उपयोग, आत्महत्याएं, यौन संचारित संक्रमणों (एसटीआई) में वृद्धि, गर्भपात में वृद्धि, यौन हिंसा और बलात्कार में वृद्धि, संस्कृति का यौनीकरण, पारिवारिक इकाई का टूटना और अनैतिकता का सामान्यीकरण जैसी समस्याएं पैदा होती हैं, जो समाज के नैतिक ताने-बाने को तेजी से नष्ट कर रही हैं। इसके अलावा, कुछ समुदायों और जातियों को अधीन करने और उन पर हावी होने की इच्छा से प्रेरित सांप्रदायिक और जाति-आधारित राजनीति का बढ़ता प्रभाव स्थिति को और खराब कर रहा है। अपराधियों और आरोपी व्यक्तियों को तेजी से नायक के रूप में चित्रित किया जा रहा है, उनके अपराधों को न केवल माफ किया जा रहा है, बल्कि उनका जश्न भी मनाया जा रहा है। हमें सांप्रदायिक और जातिगत घृणा के विरुद्ध भी जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि समाज और उसके मानदंड इन्हें घोर अनैतिक और चरित्रहीन कृत्यू के रूप में पहचानें, जिनकी प्रशंसा करने की नहीं, बल्कि कड़ी निंदा करने की आवश्यकता है। हमारा युवा
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