जैतूसाव मठ...सौ साल से भी अधिक हो गए जब कृष्ण जन्माष्टमी पर लग रहा मालपुआ का प्रसाद

 

रायपुर। सनातन धर्म व संस्कृति के ध्वजवाहक रायपुर की प्राचीनत्तम व ऐतिहासिक पहचान रखने वाले जैतूसाव मठ में आज भी उन परम्पराओं को न केवल सहेज कर रखा गया है बल्कि अनवरत आगे बढ़ाया जा रहा है। जैसे रामनवमी व कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व पूरे रस्मों रिवाज के साथ मनाया जाता है। एक प्रकार से श्रद्दालुओं को इन पर्वों का इंतजार रहता है,जब वे सहभागी बनते हैं। आज 100 साल से भी अधिक हो गए जब यह मालपुआ का प्रसादी लगाया जाता है,इससे लोगों की आस्था भी जुड़ी हुई है जब शहर के विशिष्टजन भी इस प्रसादी को ग्रहण करने के लिए जैतूसाव मठ पहुंचते हैं। इस साल भी जन्माष्टमी के मौके पर मालपुआ का प्रसाद भगवान को अर्पित होगा।  श्री ठाकुर रामचन्द्र जी स्वामी जैतूसाव मठ न्यास समिति के  न्यासी श्री अजय तिवारी व सचिव श्री महेन्द्र अग्रवाल ने बताया कि पुरानी बस्ती स्थित जैतूसाव मठ के पहले महंत लक्ष्मी नारायण दास के समय सन 1916 से हर साल रामनवमी और कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर मालपुआ बनाने की शुरुआत की गई थी, जो आज तक चल रही है.यह मालपुआ काफी मेहनत से तैयार होता है. कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मालपुआ बनाने का काम शनिवार से शुरू हो गया है. इस बार 11 क्विंटल मालपुआ बनाया जा रहा है. इस मालपुआ को 8 कारीगर और उनके सहयोगी तैयार कर रहे हैं. यहां मालपुआ बनाने के लिए गेहूं की अलग तरह से पिसाई कराई जाती जाती है. गेहूं के आटे में सूखा मेवा, काली मिर्च, मोटा सौफ भी मिलाया जाता है. इसके साथ ही इस मालपुआ को बनाने में तेल और घी का उपयोग भी किया जाता है. मालपुआ कढ़ाई में छानने के बाद इसको पैरा में सुखाया जाता है, जिससे मालपुआ में लगा हुआ तेल और घी पूरी तरह से सुख जाए. इसके बाद राजभोग आरती में भगवान को मालपुआ का भोग चढ़ाने के बाद भक्तों और श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में इसे बांटा जाता है।