कलयुग में केवल भगवत नाम ही तारणहार - गौरदास महाराज

 


00 प्रारब्ध व पुरुषार्थ साथ-साथ चलते हैं
रायपुर। श्रीमद् भागवत कथा की शुरूआत प्रणाम से हुई है और समापन भी प्रणाम से, प्रणाम की भी बड़ी महिमा है लेकिन अब तो प्रणाम का संस्कार भी नहीं रहा बल्कि प्रणाम के लिए प्रमाण देने पड़ रहे हैं। गुरु की कृपा हो गई तो घर बैठे गोविंद मिल जाते हैं। प्रारब्ध व पुरुषार्थ साथ-साथ चलते हैं। यदि प्रारब्ध कमजोर रहा तो पुरुषार्थ साथ देता है और पुरुषार्थ रहा तो प्रारब्ध। भाग्य पूर्व की कर्मों से बना है। मायापति होना अलग बात है पर कमाये हुए धन को परमार्थ व भगवान की सेवा में खर्च करने वाले भाग्यशाली लोग होते हैं। श्री द्वारिका लीला, श्री सुदामा चरित्र व शुकदेव पूजन के साथ सप्तदिवसीय भागवत कथा का शनिवार को समापन हुआ। कथा श्रवण करने विधायक पुरंदर मिश्रा भी पहुंचे थे। 

कलयुग में केवल भगवत नाम ही तारणहार - गौरदास महाराज

सिंधु पैलेस शंकरनगर में वृंदावन से पधारे कथा व्यास गौरदास महाराज ने बताया कि शुकदेव जी ने भागवत कथा की समाप्ति से पहले परिक्षित को बताया कि कलयुग में केवल भगवत नाम ही तारणहार होगा। आज गीता जयंती है और मोक्षदा एकादशी भी.गीता वेदों की रानी है और भागवत पुराणों के राजा। गीताजी तो अनंत हैं। गीता में कही बातों के सार समझ लिया तो जीवन की परेशानी भरी अठखेलियों से संभल जायेंगे। कुरुक्षेत्र के मैदान में स्वंय केशव ने अर्जुन को कई संदेश दिए हैं। अनंत भाव से जो उनका भजन-मनन करते हैं उनके रक्षा की जिम्मेदारी भी उनकी हो जाती है। जो प्राप्त नहीं हैं उसे प्राप्त करवा देते हैं और जो प्राप्त है उसकी रक्षा करते हैं। किसी चीज को कठिन मान कर सरल करना है तो इसके लिए अभ्यास व वैराग्य जरूरी है। इससे मन को वश में किया जा सकता है। सुदामा चरित्र का वर्णन आने पर बताया कि श्रीकृष्ण व सुदामा की मित्रता तो आज भी प्रासंगिक है। लेकिन अब तो मित्रता का भी मोल देखा जाने लगा है। 

कलयुग में केवल भगवत नाम ही तारणहार - गौरदास महाराज

कन्या पूजन का महत्व समझें
कन्याएं-महिलाएं पहले भी पूज्यनीय रहीं हैं और अब भी हैं। इनसे ही तो परिवार में संस्कार संवरता है, लेकिन आज संस्कार की ही कमी आ गई है। महिला व पुरुष में भेद देखा जाने लगा है। कितनी वंदनीय हमारी मातृशक्ति है देखें आप स्वंय एक दिन रामनवमी व एक दिन जन्माष्टमी मनाते हैं लेकिन नवरात्रि चार बार मनाते हैं दो नवरात्रि चैत्र व शारदीय व दो गुप्त नवरात्रि मतलब 36 दिन माता की पूजा करते हैं। 
भगवान की बनायी व्यवस्था पर आरक्षण क्यों
कथा व्यास ने राजनीतिज्ञों के द्वारा बनाये गए आरक्षण व्यवस्था को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि भगवान की बनायी व्यवस्था को बिगाडऩे वाले समाज को केवल बांटने का काम कर रहे हैं। शिक्षा, चिकित्सा से लेकर सारी व्यवस्थाएं समान होनी चाहिए। आर्थिक स्थिति, जात-पात न जाने क्या-क्या कारण लेकर आरक्षण व्यवस्था बनायी जा रही। सभी को समभाव से देखा जाना चाहिए।