रायपुर,फैसले से प्रदेश में शैक्षणिक (मेडिकल, इंजीनिरिंग, लॉ, उच्च शिक्ष) एवं नए भर्तियों में आदिवासियों को बहुत नुकसान हो जाएगा। राज्य बनने के साथ ही 2001 से आदिवासियों को 32% आरक्षण मिलना था परंतु नहीं मिला केंद्र के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के द्वारा जारी 5 जुलाई 2005 के निर्देश जनसंख्या अनुरूप आदिवासी 32%, एससी 12%, और ओबीसी के लिए 6% और c और d पदों के लिए जारी किया गया था। छत्तीसगढ़ शासन को बारंबार निवेदन आवेदन और आंदोलनों के बाद आरक्षण अध्यादेश 2012 के अनुसार आदिवासियों को 32 % एस सी एवं ओबीसी को 14% दिया गया अध्यादेश को हाई कोर्ट में अपील किया गया
छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सही तथ्य नहीं रखने से हाईकोर्ट ने आरक्षण अध्यादेश 2012 को अमान्य कर दिया। अभी तक छत्तीसगढ़ शासन द्वारा कोई ठोस पहल आदिवासियों के लिए नहीं किया गया इसके विपरीत छत्तीसगड शासन द्वारा सभी भर्तियों एवं शैक्षणिक संस्थाओं में आदिवासियों के लिए दुर्भावनापूर्ण आदेश जारी करने लगा। छतीसगढ़ में 60% क्षेत्रफल पांचवी अनुसूची के तहत अधिसूचित है,
जहां प्रशासन और नियंत्रण अलग होगा । अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों की जनसंख्या 70% से लेकर 90% से ज्यादा है और बहुत ग्रामो 100% आदिवासियों की जनसंख्या है। अनुसूचित क्षेत्रो में ही पूरी संपदा (वन, खनिज और बौद्धिक) है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से पिछड़ा हुआ है। संवैधानिक प्रावधान के बाद भी आदिवासी बाहुल्य पिछड़े प्रदेश में आदिवासियों को आरक्षण से वचित करना प्रशासन की विफलता और षड्यंत्र है। छत्तीसगढ़ में आरक्षण के लिए आवेदन के साथ लोकतान्त्रिक तरीके से आंदोलन करने के लिए समाज बाध्य होगा। साथ ही आदिवासी समाज कि आवश्यक मांगे -
• पेशा कानून नियम में ग्राम सभा का अधिकार कम न किया जाये। बस्तर एवं सरगुजा में तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग की भर्ती 100 प्रतिशत स्थानीय किया जाये।
• केंद्र के द्वारा वन अधिकार अधिनियम 2022 को लागू न किया जाये। हसदेव आरण्य क्षेत्र में आदिवासी एवं पर्यावरण संरक्षण हेतु कोल खनन बंद किया जाये। अतएव आपसे प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में आग्रह है छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के लिए अतिशीघ्र 32% आरक्षण लागू किया जाए ताकि आदिवासियों का शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक विकास हो सके।
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